बद्रीनाथ का मकान इतना बड़ा था कि शायद उस शहर में किसी का नहीं। देखने में किसी महल से कम नहीं लगता। जितना बड़ा घर था उतना ही बड़ा घर के सामने बगीचा। फल-फूल से बगीचा भरा रहता था ।जिसका…
दुनिया में असम्भव कुछ भी नहीं Duniya Men Asambhaw Kuchh bhi Nahin
शायद ऐसी घटना औरों के भी साथ होती होगी। पर यहाँ मैं अपना अनुभव बताना चाहती हूँ।दोस्तों एक बात जान लो कि दुनिया में असंभव नाम की कोई चीज है ही नहीं। शायद आप लोगों को ये बात मजाक लगे…
‘दहेज’ की आग में जलती बेटियाँ:Dahej Ki Aag Men Jalti Betiyan
'दहेज' शब्द है तो बहुत छोटा पर शायद यह बात सबको मालूम है की हमारे समाज की यह बहुत बड़ी कुप्रथा है। दहेज देने वाले और लेने वाले दोनों ही दोषी माने जाते हैं। यह सबसे ज्यादा दुखद माना जाता है…
हिन्दी सामाजिक कहानी: दरवाजे की घंटी(Hindi Samaajik Kahani:Darwaje Ki Ghanti)
आखिर वो दिना आ ही गया जब मिश्रा जी के घर में शहनाइयां बजने वाली ही है। पड़ोसियों को भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था की आज मिश्रा जी के घर में इतनी चहल-पहल और साज-सज्जा क्यों है।…
हिन्दी सामाजिक कहानी: समय के साथ सोच भी बदलो (Samay Ke Sath Soch Bhi Badalo)
माँ - सपना सब अच्छे से तैयारी कर ली न बेटा ?लड़के वालों के सामने कोई कमी न रह जाय।जी, माँ सब तैयारी कर ली मैंने।कपड़े भी निकाल कर अलग रख लिए । विजय के सामने कोई भी ऐसी वैसी…
बेटी पर मार्मिक कविताएं(Beti Par Marmik Kavitayen)
शीर्षक- बेटी वरदान या अभिशाप(कविता)क्यों बेटी होना पाप है क्या?क्यों बेटी को दुनिया में आने नहीं देते हो,क्यों आने से पहले ही उसके कफन की तैयारी करते हो,जब पता चलता है कि कोख में बेटी है,क्यों घर मे मायूसी सी…
कविता: भावनाओं को व्यक्त करती बेटियाँ (kavita: Bhaonaon Ko Wyakt Karti Betiyan)
कविताशीर्षक- एक बेटी माँ के गर्भ में कहती हैओ माँ! मुझे जन्म नहीं लेना हैइस दरिंदगी भरे समाज में, मुझे नहीं आना हैक्या करेगी, तु मुझे जन्म देकरमेरे घर वाले तो, पहले ही मारने की तैयारी कर बैठे हैंमाँ, क्योंकि…
कविता: सपनों की दुनिया में बेटियाँ (Kavita: Sapnon Ki Duniya Men Betiyan) (कविता)
शीर्षक- बेटीबेटी ना सोच की, लोग क्या कहेंगेवो होगी तेरी सबसे बड़ी कमजोरीतुझे तो करने हैं अपने सारे सपने पूरेबस तू अपने लक्ष्य को देखऔर आगे कदम बढ़ाहमेशा अपने मन की सुनऔर उसे पूरा करतुझमे है इतनी ताकतकी पूरे विश्व…
किन्नर समुदाय की कहानी: ‘हमें खुद से अलग ना समझें'(Hamen Khud Se Alag Na Samjhen)
पारुल सोचती है कि इस कोरोना जैसी महामारी में लोग गरीबों की मदद कर रहें हैं।क्यों न हम भी थोड़ी बहुत मदद बेसहारा लोगों की करें। गरीबों के पास उतने पैसे कहाँ किवो सेनेटाइजर और मास्क खरीद सके। यही सोचते-सोचते…
कविताओं में पढ़ें ‘स्त्री’ को(Kavitaon Men Padhen Stri Ko)
शीर्षक- मैं भी नारीमैं भी नारी हूँकोई वस्तु नहीं।जब चाहा प्यार किया,जब चाहा नफरत की।जब चाहा सहारा दिया,जब चाहा बेसहारा किया।जब चाहा इज्जत की,जब चाहा इज्जत लूटी ।जब चाहा मान सम्मान दिया,जब चाहा बेइज्जत की।जब चाहा साथ निभाया,जब चाहा बीच…