बेटियाँ सिर्फ हमारी ही नहीं बल्कि पूरे समाज की धरोहर है । पर शायद हमारा यह समाज इस बात को भूलता जा रहा है । कहा जाता है कि अगर मकान बनाना हो तो सबसे पहले मकान की नींव पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि अगर मकान की नींव मजबूत होगी तभी मकान भी मजबूत होगा । वैसे ही माँ-बेटी का रिश्ता एक नाजुक स्नेहिल रिश्ता होता है । अगर प्राचीन काल की बात की जाए तो उस समय में बेटियों को लक्ष्मी समझा जाता था । उनकी पूजा की जाती थी । उनकी इज्जत होती थी । उनका मान-सम्मान का ख्याल रखा जाता था । अगर किसी के घर में बेटी का जन्म होता था तो कहा जाता था कि घर में लक्ष्मी आई है और उत्सव मनाया जाता था । मगर आज तो इसके विपरित हो चुका है । बेटी के जन्म पर तो लोग दुखी हो जाते हैं । घरों में मातम सा छा जाता है । पर बेटों के जन्म पर उत्सव मनाया जाता है औऱ भी ना जाने क्या-क्या करते हैं बेटों जन्म पर ।
अगर देश में बेटियाँ ना रहे तो वह देश ही क्या । बेटियों से ही तो ये संसार है । बेटियों के बिना यह सृष्टि असंभव है । पर हमारे देश की परंपरा है कि बेटी को पराया धन समझा जाता है और बेटे को अपना धन । तो पराई धन पर क्या खर्च किया जाए । उसे तो एक दिन पराए घर ही चले जाना है । उसे प्रत्येक चीज से वंचित रखा जाता है । शिक्षा से, ऐशो आराम से और भी ना जाने कई चीजों से और बेटे को तो अपना धन समझा जाता है । उस पर तो सब कुछ लुटा दिया जाता है ।
पर ये कैसे लोग भूल जाते हैं कि आदिकाल से महिलाएँ हमारी ताकत का सबसे महत्वपूर्ण अंग रही है, जो देवी, माँ, बहन, बहू, पत्नी व बेटी बन कर पुरुषों के हित में आगे आती रही हैं ।
“कभी सीता तो कभी सावित्री, सत्यभामा होती बेटियाँ
कभी राधा तो कभी मीरा बाई है बेटियाँ
बेटा तो बस एक कुल का चिराग है
दो-दो कुल की लाज होती है बेटियाँ !!”
बेटी तो एक ही है । पर उसके रुप अनेक हैं । एक बेटी पीहर और अपने ससुराल दो घरों को एक नई दिशा देती है । एक साथ कई पद पर आसीन रहती है । फिर भी लोग इस बेटी के महत्त्व को नहीं समझ पा रहे हैं । बेटा और बेटी में भेद-भाव करते है । यहाँ तक की बेटी के जन्म से पहले ही उसे मारने की साजिश की जाती है । यह जानते हुए भी कि भ्रूण हत्या पाप है, गैर-कानूनी है, अपराध है । फिर भी लोग इस प्रकार का अपराध करने से थोड़ा भी नहीं हिचकते हैं ।
“देवी का रुप देवों का मान है बेटियाँ
घर को जो रोशन कर दे वो चिराग है बेटियाँ
माँ की छाँव और पिता का अभिमान होती है बेटियाँ
मत मारो इनको कोख में…
बेटो को जो जन्म दे वो माँ होती है बेटियाँ”
शिक्षा के क्षेत्र में भी बेटियों को पीछे रखा जाता है । इसमें भी भेद-भाव करते है । बेटों को सभी प्रकार की शिक्षा देने के लिए तत्पर रहा जाता है । पर बेटियों को इससे वंचित रखने की सोचते हैं । शायद हमारे समाज को यह पता नहीं है कि एक बेटी अगर शिक्षित होगी तो पूरा देश शिक्षित होगा ।
हमारे देश में नवजागरण की शुरुआत तो 19 वीं सदी के अंत से ही दिखाई पड़ने लगी थी । जिसमें से एक प्रयत्न स्त्रियों के पक्ष में भी था । जैसे, उन्हें शिक्षा देना, अपना स्थान प्राप्त करना इत्यादि बहुत से नारे थे । फिर भी आज देश की बेटियाँ हर जगह अपमानित, लज्जित, भयभित होती ही रहती है । आज हम 21 वीं सदी में जी रहे हैं । पर क्या बेटियों के दुख कम हो गए हैं ? वे अपनी मर्जी से जिंदगी जी सकती हैं ? क्या देश की सारी बेटियाँ शिक्षित हैं ? क्या वे इस समाज में अपनी पहचान, अपना अस्तित्व तलाश पाई हैं ? क्या वे स्वावलंबी बन पाई हैं ? नहीं न । आज सब बोलते हैं कि हम 21 वीं सदी में जी रहे है । पर क्या नजरिए में परिवर्तन आया है । बल्कि आज देश में पहले की अपेक्षा आए दिन बेटियों की इज्जत खुलेआम लुटी जा रही हैं । ऐसा कौन सा एक दिन नहीं होगा कि हमें समाचारों में इस प्रकार की घटना सुनने को न मिलती हो । बेटियों के साथ ही क्यों ? क्या वे कमजोर है, क्या वे बेसहारा है, क्या उनके सीने में दिल नहीं है, क्या उनका कोई आत्मसम्मान नहीं है, उनकी इज्जत नहीं है । है पर इस दरिंदगी भरे समाज में उन्हें कोई पहचान नहीं पाता है, उनके दर्द और तकलीफ को कोई महसूस नहीं कर पाता है । यहाँ तक की बेटियों का सौदा भी किया जाता है, उन्हें एक वस्तु समझकर बेचा जाता है । उसकी किमत लगाई जाती है ।
आज देश में बेटियों के लिए ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ के नारे लग रहे हैं । पर इसका प्रभाव लोगों पर बहुत कम ही देखने को मिल रहा है। शायद इसके अर्थ को लोग समझना ही नहीं चाहते हैं । बेटियों का उसके घर परिवार पर कितना हक है इसके बारे में कोई सोचना ही नहीं चाहता है । बेटी का जहाँ जन्म होता हैं वही उसका घर परिवार सब कुछ होता है । वह उसे ही अपना सब कुछ मानती है । उसे क्या मालूम होता है कि एक दिन उसे वो सब कुछ छोड़ कर पराए घर जाना पड़ता है । जीवन के इतने अहम फैसले करने का भी अधिकार उन्हें नहीं होता है । माँ-बाप ने जहाँ रिश्ता तय कर दिया बस वहीं शादी करनी होती है । उसे इतना भी अधिकार नहीं होता है कि वह अपनी मर्जी जाहिर कर सके । यह कैसा समाज, कैसा देश है जहाँ लक्ष्मी का कदम-कदम पर अपमान करता है । उन्हें भोग की वस्तु समझता है । उन्हें दिन-रात काम करने वाली मशीन समझता है ।
इतना ही नहीं ससुराल में जाने के बाद ताने भी सुनने पड़ते हैं। आए दिन हमें सुनने को मिलता है कि दहेज के लिए लड़की को जला दिया गया, उसे मारा-पीटा गया, उसे घर से निकाल दिया गया । बेटियों का शोषण, उनपर अत्याचार जाने कब तक चलेगा। इसे रोकने के लिए समाज को अपना दृष्टिकोण बदलना होगा । बेटियों को समझने की जरुरत है , ना की उसका शोषण करने की ।
डॉ. वर्षा कुमारी