तुम्हें क्या लगता है किफासले नहीं हैं हमारे बीचमुझसे पूछो कि कितने फासले हैं हमारे बीचमन में तो हजार सवालें हैंपर जुबां पर खामोशी ही खामोशी हैस्पर्श से फासले खत्म नहीं होते जब मन और आत्मा मिलता है वहीं फासला…
kavita phasale कविता ‘फासले’

तुम्हें क्या लगता है किफासले नहीं हैं हमारे बीचमुझसे पूछो कि कितने फासले हैं हमारे बीचमन में तो हजार सवालें हैंपर जुबां पर खामोशी ही खामोशी हैस्पर्श से फासले खत्म नहीं होते जब मन और आत्मा मिलता है वहीं फासला…
जगदीश चंद्र द्वारा प्रकाशित उपन्यास 'धरती धन न अपना' 1972 में प्रकाशित हुई थी। इस उपन्यास में जगदीश चंद्र ने पंजाब के दोआबा क्षेत्र के दलित जीवन की त्रासदी को चित्रित क्या है। मुख्य गांव से बहिष्कृत बस्ती चमादडी में…
पूरे भारत को एकजुट होकर रहने के लिए किसी एक भाषा का होना अनिवार्य है। अनादि काल से ही भारत की संस्कृति समाज एकमुखी होने के कारण वह विभिन्न भाषा-भाषी एवं धर्मावलंबी जन-समुदाय को एक सूत्र में बांधकर रखने में…
हिंदी साहित्य में स्त्री विमर्श, दलित विमर्श, आदिवासी विमर्श, किन्नर विमर्श के साथ-साथ प्रवासी विमर्श के मुद्दे भी उठाना आज बहुत ही आवश्यक हो गया है। 'प्रवास' शब्द 'वास' धातु में 'प्र' उपसर्ग लगाने से बना है। 'वास' का प्रयोग…
ऐसा कहा जाता है कि घर में बुजुर्गों का होना हमारे जीवन में सही मार्गदर्शन का काम करता हैक्या ये बात 100%सही है। हम जिस समाज में रहते हैं, वहां आए दिन देखा जाता है कि बुजुर्गों के साथ कैसा व्यवहार…
संत रविदास (रैदास) उन महापुरुषों में से हैं जिन्होंने समाज में फैली कुरीतियों को समाप्त करने का काम किया। इन्हें जगतगुरु और सतगुरु उपाधियों से भी संबोधित किया जाता है।रैदास का जन्म काशी में संवत 1433 को हुआ था। यह…
हजारी प्रसाद द्विवेदी एक ऐतिहासिक उपन्यासकार के रूप में ही जाने जाते हैं। 'बाणभट्ट की आत्मकथा' उपन्यास हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित पहला ऐतिहासिक उपन्यास है। इस उपन्यास का प्रकाशन 1946 में हुआ था। यह उपन्यास हर्षकालीन सभ्यता एवं संस्कृति…
अस्मितामूलक विमर्श को जानने से पहले हम जानेंगे अस्मिता शब्द का अर्थ और स्वरूप-'आदर्श हिंदी शब्दकोश' में 'अस्मिता' शब्द के लिए आत्मश्लाघा, अहंकार मोह आदि अर्थ दिए गए हैं। आदर्श हिंदी कोश, सं. पं. रामचंद्र पाठक,64'अस्मि' शब्द अस+मिन बसे बना…
'सूर्यकांत त्रिपाठी निराला' छायावादी युग के उन चार स्तंभों( जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा) में से एक हैं। इनकी ख्याति छायावादी कवि के रूप में ही है। इन्होंने साहित्यिक जीवन का प्रारंभ 'जन्मभूमि की वंदना' नामक कविता से किया…