शीर्षक- नारी के कई रूप
बेटी बनकर जन्म लिया,
बेटी बनकर हक माँगा,
बेटी बनकर अधिकार जताया,
बेटी बनकर खुशियाँ लुटाई,
बहू बनकर मान सम्मान किया,
बहू बनकर अपनी खुशियाँ लुटाई,
बहू बनकर सबका ख्याल रखा,
बहू बनकर दूसरों की सेवा की,
बहू बनकर सास ससुर की सेवा की,
पत्नी बनकर पति का मान रखा,
पत्नी बनकर पति की सेवा की,
पत्नी बनकर पति की रक्षा की,
पत्नी बनकर पति की खुशियों का ख्याल रखा,
माँ बनकर औरत होने का फर्ज पूरा किया,
माँ बनकर बच्चों की अच्छी परवरिश की,
माँ बनकर बच्चों की सेवा की,
माँ बनकर बच्चों की भविष्य सवारी,
माँ बनकर ममता का फर्ज पूरा किया,
यही है नारी के अनेक रूप !!
शीर्षक- ‘स्त्री’
दुःख लिखूँ या सुख लिखूँ,
या स्त्री के दिल का सारा दर्द लिखूँ ,
अपनों के दिए दर्द लिखूँ,
या जमानों के दिए दर्द लिखूँ ,
एक पुरुष का स्त्री पर अत्याचार लिखूँ ,
या अबला नारी की कथा लिखूँ ,
या अत्याचार सहने वाली स्त्री का पति से प्यार लिखूँ,
पुरुष की ताकत लिखूँ ,
या स्त्री का चंडी धारण रूप लिखूँ,
स्त्री की कमजोरी उसकी संस्कृति, सभ्यता लिखूँ,
या चारदीवारी के अंदर पुरुष का बल लिखूँ ,
सर्वस्व निछावर करने वाली स्त्री का प्यार लिखूँ ,
या स्त्री को डरपोक समझने वाली पुरुष की सोच लिखूँ,
दुःख लिखूँ या सुख लिखूँ,
या स्त्री के दिल का सारा दर्द लिखूँ ।।
डॉ. वर्षा कुमारी