रात के 11 बजे दरवाजा खोलते हुए अंजली बोली- आ गए आप अस्पताल से? समीर- हाँ अंजली। आज अस्पताल में बहुत ज्यादा मरीज थे। अंजली- आप कपड़े बदल लो। मैं आपके लिए खाना लगाती हूँ। समीर- तन्वी और प्रिया कहा हैं? अंजली- तन्वी को दवा खिला के अभी सुलाया है। प्रिया तो अपने कमरे में पढ़ाई कर रही है ।
समीर- प्रिया की मेडिकल की तैयारी कैसी चल रही है? क्लास जाती है न? मुझे तो समय मिलता नहीं है। तुम ही बच्चों पर ध्यान रखा करो थोड़ा। अंजली- हाँ…….हाँ। आप क्या कम परेशान करते हो मुझे कि अब आपकी बेटी को भी डॉक्टर ही बनना है। रात में घर आने का कोई एक समय ही नहीं रहता आपका तो। अब आपकी बेटी भी वही करेगी। और उस पर से रात में कोई न कोई आ ही जाता है घंटी बजाने। समीर- हाँ…. हाँ भाई ठीक है। एक डॉक्टर होने के नाते तो मुझे कभी भी कहीं भी जाना पड़ सकता है। तुम्हारे कहने से मैं नहीं जाऊंगा क्या? अंजली- अच्छा सुनो तन्वी को डॉक्टर के पास ले जाना होगा, कल 15 दिन पूरे हो जाएँगे। समीर- हाँ…हाँ ! अच्छा किया जो तुमने मुझे याद दिला दिया। कल मैं थोड़ा जल्दी आ जाऊंगा घर। अगले दिन …………
समीर- नमस्ते डॉ. अग्रवाल। तन्वी का आज चेकअप है। इसीलिए हमलोग आए हैं। डॉ. अग्रवाल- अच्छा किया जो आपलोग आज आ गये। वरना तो कल से एक सप्ताह के लिए मैं नहीं रहूँगा शहर में। चेकअप करके मैं तन्वी के लिए दवा लिख दे रहा हूँ। और हाँ, आप लोंगो को तो पता ही है कि इस शहर में एकमात्र मैं ही दिल का डॉक्टर हूँ। तन्वी को कुछ भी हो तो फोन से बात कर लेना आपलोग । ठीक है। समीर – बहुत-बहुत धन्यवाद आपका। अच्छा तो हमलोग चलते हैं। समीर- कहाँ थी अंजली? मैं कब से दरवाजे की घंटी बजा रहा हूँ। अंजली नाराजगी जाहिर करती हुई – रात के 12 बजे आओगे तो क्या मैं तुम्हारे लिए बैठी रहूँगी? कितनी बार बोला है कि अस्पताल से समय पर आ जाया करो घर। आपको है कि बस दूसरों की सेवा भाव ही करना है। समीर के घर में आते ही फिर से दरवाजे की घंटी बजी। अंजली क्रोधित अवस्था में- अब कौन है इतनी रात को? जैसे ही अंजली ने दरवाजा खोला एक आदमी रोता हुआ अंजली के पैरों में गिड़गिड़ाने लगा। मेरे बच्चे की तबीयत बहुत खराब है। साहब को बुलाइए। मेरे घर चल कर मेरे बच्चे को ठीक कर दे प्लीज़,प्लीज । समीर- अंदर से आवाज देता है कौन है अंजली? अंजली- कोई नहीं बस ऐसेही । तब तक समीर उस आदमी को अंजली के कदमों में गिड़गिड़ाता हुआ देख लेता है। और झट से कपड़े पहन कर बैग लेकर निकल जाता है। अंजली समीर की हरकतों से आग बबूला हो रही थी । 1 घंटे बाद समीर के वापस आने पर अंजली बोली – आ गए आप पूण्य कमा कर? समीर- अंजली तुम्हें तो पता है न इस शहर में मैं अकेला ही हूँ सामान्य चिकित्सक। अगर मैं आज समय पर नहीं जाता तो कुछ भी हो सकता था। उसके बच्चे का पल्स गिरता जा रहा था। भगवान ना करे कल अगर हमारी बच्चियों के साथ कुछ……….। खैर तुम्हें कौन समझाए। अगर तुम समझती तो मुझे रात में जाने से नहीं रोकती । अगले दिन रात के 9 बजे अस्पताल से समीर का फ़ोन आया कि मैं आज घर नहीं आ पाउँगा। मरीजों की संख्या बहुत ज्यादा हैं। समीर की बातें सुन अंजली बहुत नाराज होती है। अगले दिन ………….। अंजली- आज आप बहुत जल्दी आ गए? समीर- हाँ कल रात तो जगा ही रहा। इसीलिए आज जल्दी आ गया। सोचा थोड़ा आराम मिल जायेगा। अब जल्दी खाना लगा दो भूख भी लगी है। आज चारो लोग साथ मिलकर रात का भोजन करेंगे। अंजली- ठीक है। आप तन्वी और प्रिया को आवाज दे दो खाने के लिए। खाना खाते ही प्रिया पढ़ाई करने चली गई। अंजली और समीर तन्वी को सुलाने चले गए । रात के लगभग 1:30 बजे अचानक तन्वी की तबीयत बिगड़ने लगी। उसकी साँसे रुकी जा रही थी। अंजली और समीर दोनों घबराने लगे। समीर डॉक्टर होने के नाते भाँप गया कि तन्वी को अस्पताल ले जाने की जरूरत है। अंजली का रो-रो कर बुरा हाल हो रहा था। समीर- ओह! आज ही कार सर्विसिंग के लिए दी है । अंजली तुम तन्वी को संभालो। मैं बाहर जाकर कोई आटो रिक्शा देखता हूँ। कुछ समय पश्चात……………। उधर से एक आटो रिक्शा गुजरा। किसी को लेकर जा रहा था। इसीलिए समीर ने उसे नहीं रोका। पर आटो रिक्शे वाले ने पहचान लिया कि ये तो वही डॉक्टर हैं। जिसकी वजह से मेरे बेटे की जान बची थी। आटो ड्राइवर- साहब आप? मुझे पहचाना क्या? आपने उस रात मेरे घर जाकर मेरे बच्चे की जान बचाई थी। इतनी रात को…..कहीं जाना है क्या? समीर- हाँ, मेरी बेटी की तबीयत अचानक खराब हो गई है । उसे डॉक्टर के पास लेकर जाना है। पर तुम तो कहीं और जा रहे हो। आटो ड्राइवर ने उसमें बैठे हुए लोगों से कहा- जी आपलोग बुरा न मानें तो क्या आपलोग यहीं उरत कर किसी दूसरे आटो का इंतेजार कर लेंगे क्या? इन्हें अस्पताल जाना जरूरी है । जी हाँ, क्यों नहीं । आप अपनी बेटी को लेकर अस्पताल जाइए जल्दी। आपका अस्पताल जाना ज्यादा जरूरी है इस समय। अंजली – डॉ.अग्रवाल के घर पहुँचते ही झट से आटो से उतरी और दरवाजे पर जोर-जोर से चिल्लाने लगी। डॉ. साहब दरवाजा खोलिए,,,,,,, दरवाजा खोलिए साहब । दरवाजा खोलते हुए डॉ. अग्रवाल की पत्नी- जी आप कौन ? आप रो क्यों रहीं हैं ? अंजली- डॉक्टर की पत्नी के कदमों में गिड़गिड़ाने लगी। प्लीज मेरी बच्ची को बचा लो आप। डॉ.अग्रवाल की पत्नी- अंजली को अंदर बुलाया और सांत्वना देते हुए बोलने लगी। आप भगवान पर भरोसा रखो। आपकी बेटी ठीक हो जाएगी। मैं अभी डॉक्टर साहब को बुलाती हूँ । अपलोग यहाँ बैठो । डॉक्टर अग्रवाल- तन्वी की स्थिति ठीक नहीं लग रही है। आपलोग तन्वी को लेकर बड़े अस्पताल पहुँचो। मैं भी पहूँचता हूँ। अस्पताल पहूँचते ही डॉक्टर ने तन्वी को भर्ती कर लिया। डॉक्टर- समीर से, तन्वी का तुरंत आपरेशन करना पड़ेगा। उसके लिए खून की जरूरत है। पर ‘B’पोजेटिव खून अभी अस्पताल में नहीं है। आपलोगों को ही अब कुछ करना होगा। हमारे पास समय बिल्कुल नहीं है। अंजली और समीर बेबस और बेजान होकर एक दूसरे को देखे जा रहे थे। रामू- साहब! आप यहाँ इतनी रात को? समीर- अरे, रामू तुम इस अस्पताल में? रामू- हाँ साहब ,मैं यहाँ सफाई कर्मचारी हूँ। आज रात की ड्यूटी है मेरी । समीर- बेटी बीमार है । उसका आपरेशन करना है। ‘B’पोजेटिव खून की जरूरत है। पर अस्पताल के बैंक में खून नहीं है। समय बिल्कुल नहीं है हमारे पास। क्या करूँ कुछ समझ में नहीं आ रहा है। रामू- सर मेरा भी ‘B’पोजेटिव ही है। आपने मेरी इतनी मदद की है। कुछ नहीं होगा आपकी बेटी को। आप डॉक्टर से मेरा खून निकालने के लिए बोलिए। जल्दी चलिये साहब….जल्दी चलिये। समीर और अंजली के शरीर में जैसे जान आ गई। चार घंटे बाद ……………। डॉक्टर- मिस्टर समीर मुबारक हो। आपरेशन कामयाब रहा। कुछ समय बाद आपलोग तन्वी से मिल सकते हो।
अंजली की आंखो से अश्रु की धारा बहने लगी। उसे अपने बर्ताव याद आने लगे। समीर के सामने अपने घुटने टेक दिये। मुझे माफ कर दो समीर। आज तुम्हारे नेक कर्मों की वजह से ही जगह-जगह पर लोग टकराते गए और हमारी सहायता करते गए। तुमने निःस्वार्थ भाव से दूसरों की सेवा की है। इसीलिए भगवान आज दूसरों के रूप में हमारी सहायता की। तन्वी हमारी ठीक हो गई। आटो वाले ने हमें अस्पताल पहुंचाया। रामू ने हमें खून दिया। इनकी नेकी कभी नहीं भूल सकते।
* इस कहानी से यही शिक्षा मिलती है कि हम मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं। हम जिस समाज में रहते हैं वहाँ हमें एक-दूसरों की मदद की जरूरत हमेशा पड़ती रहेगी। हमारे मन में निःस्वार्थ सेवा की भावना होनी चाहिए। डॉ.वर्षा कुमारी