मत करो पुरुषों का शोषण…. मत लगाओ उनपर झूठा आरोप.. मत करो भरी महफिल में उन्हें बदनाम…. वो भी किसी के पिता हैं, किसी के पति, किसी के भाई हैं तो किसी का प्यार है। जैसे स्त्री जननी होती है,वैसे पुरूष उसका रखवाला होता है। जैसे स्त्री को पुरूष के सहारे की जरूरत होती है, वैसे ही पुरूष को माँ, बहन,पत्नी और बेटी की जरूरत होती है। जैसे एक स्त्री की इज्ज़त लूटना समाज के लिए कलंक है। वैसे ही पुरूष पर झूठे आरोप लगाना पूरे पुरूष जाती के लिए सवाल खड़ा करता है। जिस प्रकार सभी स्त्रियां गलत नहीं होती उसी प्रकार सारे पुरुष भी गलत नहीं होते। इस पुरूष प्रधान समाज में पुरुषों की स्थिति भी चिंताजनक है। उन्हें शोषण का शिकार होना पड़ता है। पुरूष के शोषण में महिलाओं का योगदान बखूबी देखा जा सकता है। जहाँ स्त्रियों को लगता है कि पुरुषों पर अपना आधिपत्य कायम नहीं कर पाती तो उन्हें गलत इल्जाम में फसाना आज महिलाओं के लिए एक पेशा बन चुका है। ऐसे दोनों प्रकार के मामलों में पुरुष की ही बदनामी होती है।
अब सवाल यह खड़ा होता है कि क्या महिलाएं अपना दायरा भूलती जा रही हैं या वो पुरूष प्रधान समाज को खण्डित कर देना चाह रही है। इसके कई कारण हो सकते हैं। जैसा की आदिकाल से ही कहा जाता रहा है कि पुरुष महिलाओं का शोषण करता है। वह महिलाओं को ऊंचे ओहदे पर बैठाना नहीं चाहता है। वह स्त्रियों को अपने से बढ़-चढ़ कर समाज में रहना देखना नहीं चाहता है। इसके बहुत से कारण हो सकते हैं जो आज महिलाओं के अंदर एक उथल- पुथल पैदा कर चुकी है। इसी उथल-पुथल का परिणाम आज 21वी सदी में देखने को मिल रहा है। अपने पद को हासिल करने के लिए महिलाएं किस हद तक जा रही हैं यह बात न ही हमसे छीपी है और न आपसे। सरकारी दफ्तर हो या प्राइवेट कंपनियां या कॉलेज, यूनिवर्सिटी हर जगह आज महिलाओं का दबदबा बखूबी देखा जा सकता है। पुरूष जैसे अपने आप को एक सीमित दायरे में समेट रखें हों। न ज्यादा बोलना चाहते हैं न कम। उनके जुबान से निकले कभी-कभी कोई शब्द ‘आ बैल मुझे मार’ वाली बात हो जाती है ।
डॉ.वर्षा कुमारी