अस्मितामूलक विमर्श को जानने से पहले हम जानेंगे अस्मिता शब्द का अर्थ और स्वरूप-
‘आदर्श हिंदी शब्दकोश’ में ‘अस्मिता’ शब्द के लिए आत्मश्लाघा, अहंकार मोह आदि अर्थ दिए गए हैं। आदर्श हिंदी कोश, सं. पं. रामचंद्र पाठक,64
‘अस्मि’ शब्द अस+मिन बसे बना है। अस्मि अर्थात मैं हूँ।अस्मि की भाववाचक संज्ञा ‘अस्मिता’ है। इस शब्द से स्वत्व का बोध होता है।- अस्मिता विमर्श के स्त्री स्वर ,अर्चना वर्मा,पृ-31
वामन शिवराम आप्टे के अनुसार, अस्मिता शब्द की निर्मिती अस्मि+तल+टाप से हुई है। जिसका अर्थ है- अहंकार।-वामन शिवराम आप्टे,संस्कृत हिंदी कोश-132
अस्मिता शब्द जहाँ निजत्व से परिचय करवाता है, वहीं जीवन के दूसरे पहलुओं से भी इसका संबंध देखा जा सकता है, जिसका समय के हिसाब से उसका रूप परिवर्तित होता रहता है। व्यक्ति अपनी अस्मिता को प्राप्त करने के लिए आजीवन संघर्षरत रहता है।
21वीं सदी यानी आधुनिक युग में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी अस्मिता के लिए किसी -न-किसी रूप से संघर्ष करना ही पड़ रहा है।
बीसवीं सदी विमर्शो की सदी है। पिछले कुछ दशकों में विचारधारा और चिंतन की दुनिया में आए वैचारिक और उदाहरणात्मक बदलावों ने अस्मिता के प्रश्न को केंद्र में लाकर खड़ा कर दिया है। इसी का परिणाम है कि आज कई प्रकार की अस्मिताओं का जन्म हुआ है।
इस सदी में विमर्शों की बहुत चर्चा होती रही है। स्त्री विमर्श, दलित विमर्श और आदिवासी विमर्श इन तीनों की चर्चा हिंदी साहित्य में अपने चरम सीमा पर होती आ रही है। कभी कहानी के माध्यम से तो कभी कविता के माध्यम से कभी आत्मकथा तो कभी उपन्यास के माध्यम से या और भी अन्य विधाओं के माध्यम से विमर्श होता आ रहा है। हिंदी साहित्य में लोगों का ध्यान इन तीनों साहित्य पर ज्यादा आकृष्ट हो रहा है। ऐसा नहीं है कि यह लड़ाई किसी के खिलाफ लड़ी जा रही है। यह लड़ाई अपने पहचान और अपने अस्मिता के लिए लड़ी जा रही है। आजकल अधिकांश विश्वविद्यालयों में अनुसंधान और शोध कार्य में विमर्श जैसे विषयों को खूब उठाया जा रहा है।
जब तक मनुष्य का आंतरिक संघर्ष व्यवस्थित स्पष्ट और मुखर नहीं होगा, तब तक वह किसी भी बाह्य समस्याओं से नहीं लड़ सकता।
अस्मिता विमर्श का अर्थ है-आत्मनिर्णय आत्मा व्यक्ति का प्रश्न और अपने अस्तित्व का बोध ।
डॉ.वर्षा गुप्ता