बद्रीनाथ का मकान इतना बड़ा था कि शायद उस शहर में किसी का नहीं। देखने में किसी महल से कम नहीं लगता। जितना बड़ा घर था उतना ही बड़ा घर के सामने बगीचा। फल-फूल से बगीचा भरा रहता था ।जिसका बगीचा इतना सुंदर हो तो उसमें बैठने का स्थान बनाना ही चाहिए। बद्रीनाथ ने बगीचे की साज -सज्जा बहुत अच्छे तरीके से की थी । जो भी जाता बगीचे को देखकर मुग्ध हो जाता और थोड़ी देर उस बगीचे में बैठकर अपनी थकान मिटाने लगता। बद्रीनाथ अपने जमाने के बहुत बड़े जमींदार थे। इसीलिए उन्हें कभी किसी चीज की कमी नहीं हुई। बद्रीनाथ की पत्नी ममता भी बड़ी अच्छे ख्यालात की थी। तभी तो अपने परिवार को अच्छे से संभालती थी। इनके दो लड़के थे बड़ा लड़का विजय था और छोटा लड़का अजय। जितने अच्छे संस्कार बद्रीनाथ और ममता के थे उतने ही अच्छे संस्कार विजय और अजय के थे । बद्रीनाथ अपने परिवार को कभी किसी चीज की कमी खलने ना दी।बद्रीनाथ के ख्यालात बड़े ही नेक थे। जो भी द्वार पर आता उसकी बड़ी आवभगत करते । गरीबों के साथ दया की भावना रखते और हमेशा गरीबों में कुछ- ना- कुछ सामग्री वितरण करते ही रहते थे। जैसे बद्रीनाथ थे वैसी ही गुणवती ममता भी थी। सेवा -भाव क्या होता है ममता भली-भांति जानती थी ।बद्रीनाथ शुरू से ही दोनों बच्चों के पढ़ाई पर विशेष ध्यान देते थे ।उन्हीं का परिणाम था कि आज विजय विश्वविद्यालय में हिंदी का प्रोफेसर है, तथा छोटा बेटा अजय उसका तो पूछना ही नहीं है। वह भी हिंदी का टीचर बनना चाहता है । उसकी बात सुनिएगा तो आपको हँसी आएगी , कहता है कि “अध्यापक तो सभी विषय के महत्वपूर्ण होते हैं। लेकिन एक हिंदी का अध्यापक हमें सभ्यता सिखाता है, संस्कृति सिखाता है, समाज को हमारे करीब और हमें समाज के करीब लाता है।” जिसकी सोच पहले से ही इतनी नेक हो उसका कहना ही क्या। दोनों भाई एक ही रास्ते पर चलना चाहते थे दोनों के सूझ -बूझ काफी मिलते-जुलते थे । तभी तो बद्रीनाथ को बड़ी खुशी होती है अपनी दोनों संतान को आगे बढ़ते हुए देखकर। दोनों भाई में बहुत प्रेम था। कभी किसी ने एक दूसरे की बातों को दिल से ना लगाया। जितना स्नेह विजय देता अपने छोटे भाई अजय को उससे कहीं ज्यादा अजय इज्जत देता अपने बड़े भाई को। बद्रीनाथ को उस शहर में ज्यादा- से- ज्यादा लोग पहचानते थे। सभी उन्हें आदर भाव देते थे ।
बद्रीनाथ का एक सबसे प्रिय नौकर था झबरू। वो हमेशा उनके आगे पीछे ही रहता। उन्हें कोई काम करने ही नहीं देता। जिस काम में हाथ लगाते वह झट से उन्हें हटा देता और कहता “हमारे रहते आप काम करेंगे तो यह झबरू अपना प्राण निकाल कर रख देगा तब देखिएगा हाँ। अरे इतने बड़े आदमी होकर आप काम करें और हम बैठ कर प्याज छिले ।ना बाबा ना यह मुझसे ना देखा जाएगा।”
बेचारे बद्रीनाथ भी बुढ़ापे में अकेले घर में बैठकर क्या करते। इसीलिए दिल बहलाने के लिए कोई -ना -कोई काम करते ही रहते। जिससे जी भी लगा रहेगा और शरीर भी ठीक रहेगा। ऐसा होता कि घर में दो -चार बच्चे हैं तो मन लगा रहता। अब ममता अपने काम में और विजय अपने विश्वविद्यालय में ।और छोटे नवाब जी की भी तो पढ़ाई है तो कौन मेरे साथ बैठेगा मेरा मन लगाने के लिए। इसीलिए मैं अपने आप को किसी- किसी काम में व्यस्त रखता हूँ ।पर यह झबरू है कि सुनता ही नहीं है। उसी से मुझे पूछना पड़ेगा की कोई भाई उपाय बता दे मुझे नहीं तो मुझे काम करने दे बस। अब तेरी मैं एक नहीं सुनूंगा। झबरू एक दिन बद्रीनाथ के पास विचार करता हुआ आया और बोला- “मालिक…..मालिक….. मेरे मन में एक विचार उठ रहा है। पर आपसे बोलूँ या ना बोलूँ इसी उलट फेर में फंसा हुआ हूँ। शायद आपको मेरी बातों से गुस्सा आ जाए आप मुझ पर चिल्लाना शुरू करें। मगर मुझे तो यह विचार बहुत ही बढ़िया लग रहा है। इससे न सभी लोग खुश हो जाएंगे और पता है???? फिर कुछ दिन के बाद आपका मन लगने लगाने वाला भी आ जायगा और आपका न पदवी भी बहुत बड़ा हो जाएगा। अभी तो आप सिर्फ बाप कहलाते हैं न।” बद्रीनाथ जब झबरू की कहानी सुनते -सुनते परेशान हो गए तब झबरू से बोले “क्या रामायण सुना रहे हो दो घंटे से। जो विचार तुम्हारे मन में उठ रहा है उसे सुनाओ। रामायण में सीता और राम कौन थे मुझे पता नहीं चला। अपने विचार को अब साफ-साफ प्रकट करो। तुम्हारी बहुत मेहरबानी होगी मुझपर।” झबरू ने बोला – “आप विजय की शादी क्यों नहीं करते। अरे इतना बड़ा बन गया है। नौकरी करता है। एक लाख कमा रहा है महीना। अब किस बात की चिंता है। अरे बहू आएगी तो घर में रोशनी आ जाएगी। इतना बड़ा महल है रहने वाला कोई नहीं है। मालकिन भी कितना संभालेंगी घर। अरे उन्हें भी तो आराम करना चाहिए। उम्र हो चली है। अब आप लो गों को कौन देखेगा। बहू आएगी तो मालकिन को भी थोड़ा आराम मिलेगा दो- दो बेटे हैं किस दिन बूढ़े माँ -बाप को आराम देंगे।” यह बात बद्रीनाथ के पल्ले पड़ गई और वह तुरंत ममता को बुलाकर बताने लगें ।फिर दोनों ने विजय की शादी करने का विचार बना लिया। शाम में जब विजय घर आया तो ममता विजय से बोलने लगी – “बेटा मैं और तुम्हारे बाबूजी तुम्हारी शादी कराना चाहते हैं। क्योंकि बेटा अब तुम समझदार बन गए हो, अच्छा कमाते भी हो और अब हम लोगों का शरीर थक रहा है। अगर तुम हाँ बोलो तो हमलोग लड़की देखें तुम्हारे लिए?” अपनी माँ की बातों को सुनकर विजय ने अपनी सहमति दे दी। जब से बद्रीनाथ ने अपने दोस्तों से बताना शुरू कर दिया कि अब मेरा विजय जिम्मेदार कमाने वाला बन गया है। उसकी अब शादी करनी है।तब से उनके घर में रिश्तों की लाइन लगने लगी। क्योंकि सभी को पता था कि बद्रीनाथ का बड़ा बेटा लाख रुपए महीना कमाता है और बहुत अमीर लोग हैं। उन लोगों के ख्यालात भी काफी अच्छे हैं। इतना बड़ा घर है नौकर चाकर हैं अगर उस घर में मेरी बेटी जाएगी तो राज करेगी। बद्रीनाथ के यहाँ जो भी आता उनके ही स्तर का। मगर सब कुछ ठीक रहते हुए भी विजय को कुछ पसंद नहीं आ रहा था। एक से बढ़कर एक रूपवती, गुणवती, पैसे वाले के घर से रिश्ता आता था जो यहाँ तक भी कहते कि ‘मैं इतना सामान दूंगा बेटी को कि आपका तो घर ही भर जाएगा और क्या चाहिए आपको। मगर विजय के दिल में क्या चल रहा था यह कोई भाँप नहीं पा रहा था। रोजाना कोई- न- कोई लड़की के पिता आ ही जाते थे बद्रीनाथ के दरवाजे पर। विजय सबसे बहुत अच्छे से बातचीत करता,उनलोगों की बहुत आवभगत करता। पर कुछ साफ-साफ जवाब नहीं दे पाता। बद्रीनाथ और ममता बहुत दुखी रहने लगे।उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें। एक दिन बद्रीनाथ और ममता विजय से पूछने लगे “बेटा तुझे क्या हो गया है? इतने अच्छे- अच्छे रिश्ते आ रहे हैं। वे तुझे हर चीज देने के लिए तैयार है रुपया पैसा सोना- चांदी, बंगला -गाड़ी सब चीज तुझे दे रहे हैं फिर तुझे क्या हो गया है? इतने अमीर-से-अमीर लोग आ रहे हैं रिश्ते लेकर अपनी बेटी की शादी करने के लिए पर तुझे कोई लड़की पसंद ही नहीं आई।अगर तेरे मन मे कुछ और है तो बता दे बेटा हम वहीं तेरी शादी करेंगे । कोई लड़की है क्या तेरे दिल में ? देखते- देखते एक साल हो गया बेटा । तुझे कैसी लड़की चाहिए बोल बेटा बोल।” तब विजय जवाब देता है “मुझे धन दौलत की कोई जरूरत नहीं है माँ। मेरे पास तो बहुत पैसे हैं। पैसे तो एक दिन खर्च हो जायेंगे।आपलोग वैसी लड़की देखिए ‘जो पैसों को नहीं रिश्तों को अहमियत दे, घर को नहीं घर में रहने वालों को अहमियत दे, जो चेहरों को नहीं दिल को अहमियत दे।’ माँ आपलोग मेरी शादी ही तो कराना चाहते हैं।मैं किसी निम्न्नवर्गीय(lower class) और असहाय लड़की से शादी करना चाहता हूँ । जिसकी जिंदगी भी आबाद हो जाएगी और उसके परिवार वालों की मदद भी हो जाएगी।” इतना सुनने के बाद बद्रीनाथ और ममता का सर गर्व से ऊचां हो गया। विजय के कहने पर बद्रीनाथ ने वैसी ही लड़की की तलाश शुरू कर दी पर उन्हें वैसा परिवार नहीं मिल पाया। एक दिन सुबह की चाय पीते- पीते अजय ने बद्रीनाथ से कहा “पिताजी आप तो सभी गरीबों की मदद करते हैं न। क्या आप मेरी मित्र संस्कृति की मदद कर सकते हैं?उसके पिताजी को दिल की बीमारी है। वह अपनी माँ-बाप की अकेली है। वो छोटे- छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर अपनी पढ़ाई करती है। उसी से परिवार चलाती है।उसके पास अभी इतने पैसे नहीं है कि अपने पिता का इलाज करा सके। वो पढ़ाई में बहुत अच्छी है उसे कॉलेज में छात्रवृति भी मिलता है। उसका व्यवहार बहुत ही नेक है। डॉक्टर ने 3 दिन का समय दिया है पैसों का इंतेजाम करने के लिए। अभी वो बहुत मजबूर है। पिताजी आप उसे कुछ पैसे दे दें तो उसके पिता की जान बच सकती है। विजय अंदर कमरे में बैठा अजय की सारी बातों को सुन रहा था। तभी विजय ने मन-ही-मन अपना फैसला कर लिया।और बाहर आकर पिता से विजय ने हिचकते हुए अपनी भावनाओं को रखा।फिर अजय से बोला मैं तुम्हारी मित्र संस्कृति से मिलना चाहता हूँ।अजय अपने भाई को संस्कृति के घर ले गया।विजय संस्कृति कि माँ को सांत्वना देते हुए बोलता है…. आपको जीतने पैसों की जरूरत है मैं दूंगा आप चिंता ना करें। बाबूजी ठीक हो जायेंगे। पर संस्कृति की माँ इस बात के लिए राजी नही थी, उसे पता था की संस्कृति के पिता ये बात बरदास्त नहीं करेंगे की किसी पराए लोगों के पैसों से उनका इलाज हो।तभी अजय ने बताया कि ये लोग बहुत नेक हैं किसी पराए के पास कभी हाथ नहीं फैलाते। तभी विजय अपनी मन की बात कहता है ‘मैं संस्कृति से शादी करके आपसे रिश्ता जोड़ना चाहता हूँ…….।’
अगले दिन मंदिर में विजय संस्कृति से शादी करके अपने बाबूजी का इलाज करवा कर अपने बेटे होने का फर्ज पूरा किया। संस्कृति में वे सारे गुण थे लेकिन पैसों के आभाव के कारण वे कुछ कर न सकी थी । लेकिन बद्रीनाथ के परिवार को इतने अच्छे से संभाला कि सारे शहर वालों के लिए मिसाल बन गए विजय और संस्कृति।
डॉ. वर्षा कुमारी