संत रविदास (रैदास) उन महापुरुषों में से हैं जिन्होंने समाज में फैली कुरीतियों को समाप्त करने का काम किया। इन्हें जगतगुरु और सतगुरु उपाधियों से भी संबोधित किया जाता है।
रैदास का जन्म काशी में संवत 1433 को हुआ था। यह कबीर की भांति ही पढ़े लिखे न थे परंतु इन्हें सामाजिक ज्ञान बहुत था। इन्होंने साधु संतों की संगत में रहकर बहुत से ज्ञान प्राप्त किए थे। इनके गुरु रामानंद जी थे। रैदास भक्ति काल के प्रमुख कवियों में से एक हैं। कबीर की भांति ही संत रैदास भी संत कोटि के प्रमुख कवियों में विशिष्ट स्थान रखते हैं। मूर्ति पूजा का इन्होंने विरोध किया तथा इनका मानना था कि व्यक्ति की आंतरिक भावनाएं और आपसी भाईचारे से ही समाज में प्रेम उत्पन्न किया जा सकता है। यह काव्य रचनाएं ब्रजभाषा में ही किया करते थे।
रैदास की रचनाओं का एक संग्रह है ‘रैदास की बानी’। गुरु ग्रंथ साहब में तथा कई संग्रहों में इनके पदों को देखा जा सकता है।
डॉ.वर्षा गुप्ता