ऐसा कहा जाता है कि घर में बुजुर्गों का होना हमारे जीवन में सही मार्गदर्शन का काम करता है
क्या ये बात 100%सही है। हम जिस समाज में रहते हैं, वहां आए दिन देखा जाता है
कि बुजुर्गों के साथ कैसा व्यवहार किया जा रहा है। इस समाज में आज बुजुर्ग सबके
लिए बोझ बनते जा रहे हैं।इसका कारण बहुत कुछ हो सकता है पर क्या यह सही है कि हम
किसी कारणवश बुजुर्गों को बोझ समझें। इस समाज में बहुत से ऐसे घर हैं जहां पर बुजुर्गों
का होना शर्मिंदगी के तौर पर देखा जा रहा है। उनका रहन -सहन, उनका खान-पान उनका
, चाल- चलन उम्र के हिसाब से बदल जाता है।एक बच्चे में और एक बुजुर्ग में कोई ज्यादा अंतर नहीं है।दोनों समानांतर हैं क्योंकि एक बच्चे की मानसिकता और एक बुजुर्ग की मानसिकता दोनों कहीं ना कहीं समान होती है। एक बच्चे से जिस प्रकार का व्यवहार हम लोग करते हैं ठीक वैसा ही व्यवहार हमें बुजुर्गों के साथ भी करना चाहिए। क्योंकि जैसे-जैसे उम्र ढलती जाती है लोगों की सोचने
समझने की क्षमता कम होती जाती है। उनके कार्य करने की क्षमता भी कम होती जाती है।
इस बात को समझना हमारा कर्तव्य है ।
जो लोग इस प्रकार की बातों को समझते हैं उनके घरों में तो बुजुर्गों की देख-भाल ठीक प्रकार से होती है। मगर ऐसे घर कम ही मिलेंगे। इस आधुनिक दौर में अधिकांशतः घर ऐसे ही मिलेंगे जहां बुजुर्गों के साथ सही व्यवहार नहीं किया जाता है। इसी का परिणाम होता है कि बुजुर्गों को वृद्धाआश्रम में सरन लेनी पड़ती है।क्योंकि उनके लिए घरों में कोई जगह नहीं होता।उनका घर में होना लोगों को शर्मिंदगी महसूस कराती है।उन्हें लगता है कि बुजुर्गों के घर में रहने से उनकी इज्जत कम हो जाती है।कई लोग ऐसा सोचते हैं कि अगर घर में बुजुर्ग है तो समाज वालों की नजर में हमारी नाक कट जाएगी।
वह इसलिए सोचते हैं क्योंकि बुजुर्गों का दिनचर्या हमसे अलग हो जाता है।उनका उठना,बैठना,खाना-पीना, बात करने का तरीका धीरे-धीरे सब कुछ बदलता जाता है। क्योंकि उनके सोचने समझने की क्षमता कम होती जाती है।इस बात का ध्यान हमें रखना होगा कि उनका जीवन हम लोगों से थोड़ा भिन्न हो जाता है।हमें जो कुछ पसंद है ऐसा नहीं कि उन्हें भी पसंद आए।चाहे खान-पान हो, पहनावा हो,फिल्म हो कुछ भी हो सकता है। उनका पसन्द उनके उम्र के हिसाब से बदलता रहता है।हमें उनकी पसंद का मान रखना चाहिए।
परिस्थिति में हमें उनका साथ देने की जरूरत है।उनसे दूरी बनाना या उन्हें वृद्धाआश्रम भेजना पूरे मानव जाति पर कीचड़ उछालने वाली बात होगी।वृद्धों की भावनाओं और जज्बातों को समझने की जरूरत है।अगर आज हम हैं तो हमें ये सोचना चाहिए कि वो हैं तभी हम हैं।फिर लोग कैसे भूलते जा रहे हैं की बुजुर्गों के घर में होने से उनकी इज्जत कम हो जाएगी।आजकल लोगों की ऐसी मानसिकता हो गई है कि अगर घर में कोई मेहमान आता है तो वह सोचते हैं की उनके सामने हमारे घर के बुजुर्ग नहीं जाएं तो अच्छा है क्योंकि उन्हें मेहमानों के सामने जाना उन्हें पसंद नहीं आता है। वह अपने जीवन में किसी भी तरीके का रुकावट या बदलाव बर्दाश्त नहीं करना चाहते हैं वह अपनी दिनचर्या को एकदम पर्फेक्ट रखना चाहते हैं।
डॉ.वर्षा गुप्ता