‘सेवासदन’ प्रेमचंद द्वारा लिखित हिंदी उपन्यास है। प्रेमचंद ने इसे 1916 ईस्वी में उर्दू में ‘बाजारे हुस्न’ के नाम से लिखा था। फिर इसे प्रेमचंद ने ही ‘सेवासदन’ नाम से 1919 ई० में इस पुस्तक का हिन्दी अनुवाद किया। यह उपन्यास यथार्थवादी उपन्यास माना जाता है। इस उपन्यास में प्रेमचंद मध्यवर्गीय परिवार के जीवन में होने वाली विभिन्न परिस्थितियों को उभारने की कोशिश की है और देखा जा सकता है कि इंसान गलत मार्ग पर चलना तो नहीं चाहता है पर परिस्थितिवश वह गलत मार्ग को स्वीकारने पर मजबूर हो जाता है ।
इस उपन्यास की नायिका सुमन, वेश्यावृत्ति की ओर तो नहीं जाना चाहती, पर परिस्थितियां उसे इस कदर मजबूर कर देती है कि उस समय उस मार्ग को चुनने के अलावा सुमन के पास कोई रास्ता ही नहीं था। ‘सेवासदन’ हिंदी का ऐसा उपन्यास है जिसमें नारी जीवन की समस्याओं के साथ कई समस्याओं को उभारा गया है। बेमेल विवाह, दहेज प्रथा, वेश्यावृत्ति, ढोंग,पाखंड,चरित्रहीनता, साम्प्रदायिक द्वेष, धुसखोरी, वेश्यावृत्ति आदि को प्रेमचंद ने बड़ी सरलता से उभारने की कोशिश की है। सुमन की जिंदगी में शादी के बाद कई उतार चढ़ाव आए पर वो कभी हार नहीं मानी। पति द्वारा आधी रात को घर से निकाले जाने पर उसे एक वेश्या घर में शरण देती।
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सुमन के पिता दरोगा कृष्ण चंद्र सज्जन अफसर थे। उन्होंने कभी रिश्वत की ओर मुड़ कर नहीं देखा। यहां तक की वह दूसरों को भी ये अपराध करने से मना करते थे। दरोगा कृष्णचंद की पत्नी गंगाजली बहुत ही स्वाभीमानी स्त्री थी। वह अपने पति को कभी गलत मार्ग पर चलने की सलाह नहीं देती थी। दरोगा कृष्णचंद की दो बेटियां सुमन तथा शांता थी। कृष्णचंद जी अपनी दोनों बच्चीयों को कभी किसी चीज की कमी ना खलने दी। बड़े लाड़ प्यार से उन्होंने पाला था। सुमन बहुत ही सुंदर,शिक्षित तथा सुशील लड़की थी। इस उपन्यास में सुमन मुग्ध मनोहरकारिणी अनुपम सौंदर्य की प्रतिमा है। इसीलिए जब दहेज के अभाव में सुमन का विवाह एक विधुर, अधेड़ व्यक्ति गजाधर पांडे के साथ हो जाता है तो उसे अपने शादीशुदा जिंदगी में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। गजाधर पांडे का उम्र के साथ-साथ उसके स्वभाव में भी बहुत अंतर था। गजाधर सुमन को एक सुखी जीवन नहीं दे पाता है। वह एक सुखी जीवन जीने से वंचित रह जाती है। यही बात उसे हर वक्त कचोटते रहता है। धीरे-धीरे दोनों का वैवाहिक जीवन डबाडोल होने लगता है। सुमन एक सुखी जीवन जीना चाहती थी। पर गजाधर के घर में जाकर वह सभी सुख-सुविधाओं से वंचित रह जाती हैं और अपनी किस्मत को कोसती रहती हैं। सुमन अपनी पूरी जिंदगी सेवासदन को समर्पित कर देती है। सुमन एक ऐसी नारी जाति का प्रतिनिधित्व करती है जो हजार आपत्तियों का सामना स्वयं ही करती है और अपने द्वारा किए गए अच्छे या बुरे कर्मों का फल भी भोगने के लिए वह तैयार भी रहती है।
इस उपन्यास में यह भी देखा गया है कि सुमन वेश्या जीवन ग्रहण करने के बाद समाज में तिरस्कृत होने का मार भी सहन करती है। चंचलता और तृष्णा से विरक्त होकर वह धार्मिक पथ पर चलती है। धन की अपेक्षा वह सेवा-निरत होकर अपने जीवन को पूरी तरह से बदल देती है। सुमन का यही कदम उसके जीवन को एक नई दिशा प्रदान करता है और उसे एक ऊंचे ओहदे पर बैठाता है।
सेवासदन उपन्यास में हम देख सकते हैं कि सुमन सब कार्य करती है नाचना, गाना लेकिन अपने को वह कभी भ्रष्ट नहीं होने देती है। सुमन यह जानती है कि वह किस अंधकार में जी रही हैं। यह अंधकार उसके लिए कतई अच्छा नहीं है। उसके मर्यादा के खिलाफ है। पर मजबूरीवश वह अपने आप को उस अंधकार में पाती है। पर उसे स्वयं पर संयम रखना भी आता है। वह सोचती है कि- यह (दालमंडी)स्थान दूर से कितना सुहावना, कितना मनोरम, कितना सुखमय दिखाई देता है। मैंने इसे फूलों का बाग समझा, लेकिन है क्या? एक भयंकर वन, मांसाहारी पशुओं और विषैले कीड़ों से भरा हुआ है। यह वाक्य प्रेमचंद के उपन्यास सेवासदन की नायिका सुमन के लिए बिल्कुल सटीक वाक्य है।
डॉ.वर्षा कुमारी