आत्मकथा लिखने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है अपने प्रति ईमानदारी और निर्वैयक्तिकता। कल्पना की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। न ही झूठ की बुनियाद पर कहानी गढ़नी चाहिए। इन सबसे बचते हुए आत्मकथा को जीवन में घटने वाले सच्ची घटनाओं…
दलित लेखन सामाजिक सरोकार:Dalit Lekhan Samaajik Sarokaar
'दलित' शब्द आधुनिक युग की देन है। प्राचीन काल में दलितों को अछूत और शूद्र कहा जाता था। वर्तमान समय में दलित अनिसुचित जाति के अन्तर्गत आते हैं। दलित शब्द का प्रयोग उनके लिए किया जाता है जो समाज में निचले…
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’:Rashtrakavi Ramdhari Singh Dinkar
बिहार की मिट्टी में जन्में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' का जन्म 23 सितंबर 1908 ई. में जिला मुंगेर(बिहार) के सिमरिया गांव में हुआ था। दिनकर जी राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत कवि के रूप में सुविख्यात हैं।रामधारी सिंह दिनकर की कविताएं व्यक्ति…
कुंवर नारायण:रचना कर्म Kunwar Narayan:Rachna Karm
कुंवर नारायण जी का जन्म 19 सितंबर 1927 ई. में उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले में हुआ था और इनकी मृत्यु 15 नवम्बर 2017 में हुई थी। कुंवर नारायण जी की मूल विधा कविता रही है, लेकिन उन्होंने कहानी, रंगमंच,…
नारी अस्मिता और अनामिका की कविताएँ: Naari Smita Aur Anamika Ki Kavitayen
अनामिका हिंदी काव्य-क्षेत्र की कवयित्री हैं यद्यपि उनकी प्रतिभा कथा-साहित्य में भी कर्मनिरत है फिर भी उसका पूर्ण-परिपाक कविता में हुआ है। वे ऐसी काव्य लेखिका हैं जिनका कैरियरग्राफ उत्तरोत्तर अग्रसर है। अनामिका उत्तराधुनिक युग की कवयित्री हैं, जब नारीवाद…
हिंदी दिवस कब और क्यों मनाया जाता है, इतिहास और महत्व:Hindi Diwas Kab Aur Kyon Manaya Jata Hai Itihaas Aur Mahataw
हिंदी दिवस प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को मनाया जाता है। इसी दिन देवनागरी लिपि में हिंदी को भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में आपनाया गया था। 1953 ईस्वी में पहली बार हिंदी दिवस का आयोजन हुआ था। तभी से…
सफर जिंदगी का Saphar Zindagi Ka:Prernaatmak Lekh
सफ़र से ही सफलता मिलती हैसफर से ही यश की प्राप्ति होती हैसफर से ही पहचान बनती हैजिंदगी का सफर बहुत कठिन होता है क्योंकि आगे की जिंदगी हमें दिखाई नहीं देती। जिस प्रकार सड़क पर चलते वक्त हमें सड़क…
हिन्दी नाटकों में सामाजिक सरोकार:Hindi Natakon Men Saamaajik Sarokaar
वैसे तो नाटक की परंपरा बहुत ही प्राचीन है। नाटक के बारे में कहा जा सकता है कि नाटक जन्म से ही शब्द की कला के साथ-साथ अभिनय की कला भी है। नाटक की अपनी कुछ सीमाएं होती हैं। नाटक…
एक दृष्टि पुरुषों की ओर Ek Drishti Purushon ki or
मत करो पुरुषों का शोषण…. मत लगाओ उनपर झूठा आरोप.. मत करो भरी महफिल में उन्हें बदनाम…. वो भी किसी के पिता हैं, किसी के पति, किसी के भाई हैं तो किसी का प्यार है। जैसे स्त्री जननी होती है,वैसे…
भारतेंदु युग और उस युग में गद्य विधाओं का विकास:Bhartendu Yug Aur Us Yug Men Gadh Vidhaon Ka Vikas
जीवन परिचय भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म 9 सितंबर सन 1850, में उत्तर प्रदेश के काशी नगरी में हुआ था। इनका मूल नाम हरिश्चंद्र था। भारतेंदु इनकी उपाधि थी। इनके पिता का नाम गोपाल चंद्र था जो उच्च कोटि के कवि…