शीर्षक- मैं भी नारीमैं भी नारी हूँकोई वस्तु नहीं।जब चाहा प्यार किया,जब चाहा नफरत की।जब चाहा सहारा दिया,जब चाहा बेसहारा किया।जब चाहा इज्जत की,जब चाहा इज्जत लूटी ।जब चाहा मान सम्मान दिया,जब चाहा बेइज्जत की।जब चाहा साथ निभाया,जब चाहा बीच…
कविताओं में झलकती ज़िन्दगी की वास्तविकता(Kavitaaon Men Jhalakti Zindagi Ki Wastwikata)
शीर्षक- जिंदगी की हकीकतज़िन्दगी जैसी दिखती है,वैसी हकीकत में होती नहीं,जैसे लोग देखते हैं दूसरों को जीते हुएवो हकीकत होती नहीं ,चेहरे पर तो मुस्कान होता है उनकेपर किसे पता कि दिल में उनके कितना दर्द होता हैसुबह उठ कर…
शहीदों के नाम कविता(Shahidon Ke Naam Kavita)
शीर्षक- यह देश है वीरों काधन्य है वो माँ, जिसने वीरों को जन्म दियाधन्य है वो पिता, जिसने उसे वीर बनायाधन्य है ये देश, जहाँ वीरों का जन्म हुआदेश की रक्षा करते-करतेजाने वो कहाँ चले गएजन्मी है उस घर में…
एहसासों को बुनती कविताएं:Ehsason Ko Bunti Kavitayen
शीर्षक- शब्द जिसे मैं लिखना चाहूँलिखना तो चाहती हूँ बहुत कुछइस जमाने के बारे मेंइस बेदर्द दुनिया के बारे मेंइस बेमतलबी दुनिया के बारे मेंजब भी हाथों में कलम उठाती हूँशब्दों को पन्नों में कैद करना चाहती हूँसाथ ही शब्दों…
कविताओं में झलकती ख्वाहिशें kavitaon Men Jhalakti khawahishen
कविता- ख्वाहिश कुछ कर गुजरने कीजिंदगी में कभी किसी की हर ख्वाहिश पूरी नहीं होतीजो चाहो वह हमेशा पूरी नही होतीजो हो जाती है बिन माँगे ही पूरीवो चाहत नहीं होती हैजिसे शिद्दत से चाहो वो कभी नसीब में नहीं…
कविता: कई रूपों से भरी है नारी(Kavita: Kai Rupon Se Bhari Hai Naari
शीर्षक- नारी के कई रूपबेटी बनकर जन्म लिया,बेटी बनकर हक माँगा,बेटी बनकर अधिकार जताया,बेटी बनकर खुशियाँ लुटाई,बहू बनकर मान सम्मान किया,बहू बनकर अपनी खुशियाँ लुटाई,बहू बनकर सबका ख्याल रखा,बहू बनकर दूसरों की सेवा की,बहू बनकर सास ससुर की सेवा की,पत्नी…
लेख: कितना कुछ सह जाती हैं बेटियाँ: (Lekh:Kitana Kuchh Sah Jati Hain Betiyan)
बेटियाँ सिर्फ हमारी ही नहीं बल्कि पूरे समाज की धरोहर है । पर शायद हमारा यह समाज इस बात को भूलता जा रहा है । कहा जाता है कि अगर मकान बनाना हो तो सबसे पहले मकान की नींव…
कविताओं की दुनिया (Kavitaon Ki Duniya)
कविताशीर्षक- चाहत एक 'स्त्री' कीएक स्त्री आखिर चाहती क्या हैबेटी बन कर माँ-बाप का प्यारपत्नी बनकर पति का प्यारबहू बनकर सास-ससुर का प्यारमाँ बनकर बच्चों का प्यारक्यों नहीं बेटी को बढ़ाते होक्यों नहीं एक पत्नी का हर मोड़ पर साथ…
कविता: शब्द-शब्द में भाव(Kavita: Shabd Shabd Men Bhaaw)
शीर्षक- मातृभूमि से प्रेम किसेपहले अपने को देखाऊपर से नीचे, ध्यान सेक्या कमी है मुझमेंदिखता तो मैं भी हूँ औरों की तरहफिर चार पहिए में बैठे लोगों को देखाक्या अंतर है, उसमें और मुझमेंयही ना, वह गाड़ी में बैठा हैमैं…