जगदीश चंद्र द्वारा प्रकाशित उपन्यास 'धरती धन न अपना' 1972 में प्रकाशित हुई थी। इस उपन्यास में जगदीश चंद्र ने पंजाब के दोआबा क्षेत्र के दलित जीवन की त्रासदी को चित्रित क्या है। मुख्य गांव से बहिष्कृत बस्ती चमादडी में…
हिन्दी के विकास में दक्षिण भारतीय संस्थाओं का योगदान Hindi Ke vikas Me Dakshin Bhartiy Sansthaon Ka Yogdan
पूरे भारत को एकजुट होकर रहने के लिए किसी एक भाषा का होना अनिवार्य है। अनादि काल से ही भारत की संस्कृति समाज एकमुखी होने के कारण वह विभिन्न भाषा-भाषी एवं धर्मावलंबी जन-समुदाय को एक सूत्र में बांधकर रखने में…
हिन्दी का प्रवासी साहित्य Hindi Ka Prawasi Sahitya
हिंदी साहित्य में स्त्री विमर्श, दलित विमर्श, आदिवासी विमर्श, किन्नर विमर्श के साथ-साथ प्रवासी विमर्श के मुद्दे भी उठाना आज बहुत ही आवश्यक हो गया है। 'प्रवास' शब्द 'वास' धातु में 'प्र' उपसर्ग लगाने से बना है। 'वास' का प्रयोग…
बुजुर्गों को समझने की जरूरत है Bujurgon Ko Samajhne Ki Jarurat Hai
ऐसा कहा जाता है कि घर में बुजुर्गों का होना हमारे जीवन में सही मार्गदर्शन का काम करता हैक्या ये बात 100%सही है। हम जिस समाज में रहते हैं, वहां आए दिन देखा जाता है कि बुजुर्गों के साथ कैसा व्यवहार…
संत रविदास (रैदास) Sant Ravidaas(Raidaas)
संत रविदास (रैदास) उन महापुरुषों में से हैं जिन्होंने समाज में फैली कुरीतियों को समाप्त करने का काम किया। इन्हें जगतगुरु और सतगुरु उपाधियों से भी संबोधित किया जाता है।रैदास का जन्म काशी में संवत 1433 को हुआ था। यह…
‘बाणभट्ट की आत्मकथा’ उपन्यास का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:Banbhatt Ki Aatmkatha ka Etihasik Pariprekshy
हजारी प्रसाद द्विवेदी एक ऐतिहासिक उपन्यासकार के रूप में ही जाने जाते हैं। 'बाणभट्ट की आत्मकथा' उपन्यास हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित पहला ऐतिहासिक उपन्यास है। इस उपन्यास का प्रकाशन 1946 में हुआ था। यह उपन्यास हर्षकालीन सभ्यता एवं संस्कृति…
अस्मितामूलक विमर्श Asmitamulak Vimarsh
अस्मितामूलक विमर्श को जानने से पहले हम जानेंगे अस्मिता शब्द का अर्थ और स्वरूप-'आदर्श हिंदी शब्दकोश' में 'अस्मिता' शब्द के लिए आत्मश्लाघा, अहंकार मोह आदि अर्थ दिए गए हैं। आदर्श हिंदी कोश, सं. पं. रामचंद्र पाठक,64'अस्मि' शब्द अस+मिन बसे बना…
‘सरोज स्मृति’ शोक गीत:’सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’Saroj Smriti shok Git ‘Suryakant Tripathi Nirala’
'सूर्यकांत त्रिपाठी निराला' छायावादी युग के उन चार स्तंभों( जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा) में से एक हैं। इनकी ख्याति छायावादी कवि के रूप में ही है। इन्होंने साहित्यिक जीवन का प्रारंभ 'जन्मभूमि की वंदना' नामक कविता से किया…
महिला आत्मकथाकार अपनी आत्मकथा में व्यक्त करती संघर्षमय जीवन:Mahila Aatmkathakar Apni Aatamkatha Me Vykat karti Sangharshmay Jiwan
आत्मकथा लिखने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है अपने प्रति ईमानदारी और निर्वैयक्तिकता। कल्पना की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। न ही झूठ की बुनियाद पर कहानी गढ़नी चाहिए। इन सबसे बचते हुए आत्मकथा को जीवन में घटने वाले सच्ची घटनाओं…
दलित लेखन सामाजिक सरोकार:Dalit Lekhan Samaajik Sarokaar
'दलित' शब्द आधुनिक युग की देन है। प्राचीन काल में दलितों को अछूत और शूद्र कहा जाता था। वर्तमान समय में दलित अनिसुचित जाति के अन्तर्गत आते हैं। दलित शब्द का प्रयोग उनके लिए किया जाता है जो समाज में निचले…