माँ – सपना सब अच्छे से तैयारी कर ली न बेटा ?लड़के वालों के सामने कोई कमी न रह जाय।जी, माँ सब तैयारी कर ली मैंने।कपड़े भी निकाल कर अलग रख लिए । विजय के सामने कोई भी ऐसी वैसी हरकत ना कर देना जिसे उन्हें पसंद ना आये।
सपना – नहीं माँ आप चिंता ना करो ,ऐसा कुछ भी नहीं करूँगी। मुझे जो समझ आयगा वही बात करूँगी विजय से।आप साक्षी को बोल दो अपना मुँह बंद रखेगी।मॉडर्न बनती है न। मैं तो अपनी सोच के साथ ही सही हूँ।मुझे मॉडर्न नहीं बनना है माँ। मैं जैसी हूँ वैसी ही ठीक हूँ।मुझे किसी को पसंद करना है तो मैं जैसी हूँ वैसे ही मुझे पसंद करे।
सपना और साक्षी दोनों हमशक्ल थी। बस यही अन्तर था कि एक नये जमाने की थी और एक पुराने सोच को लेकर चलने वाली थी। साक्षी जमाने के साथ लड़ने वाली लड़की थी।और सपना डर -डर के जीती थी।
माँ – बेटा विजय , लड़की से ज्यादा कुछ नहीं पूछना ,अपनी राय रखना और उसकी राय के बारे में जानना ।वैसे मैंने सुना है लड़की बहुत सीधी और साधारण सोच वाली है ।अच्छे से बात करना उससे ।
विजय – माँ मैंने आपसे कितनी बार कहा है कि मुझे सिर्फ हाँ, ना करने वाली लड़की नहीं चाहिए ।मुझे जमाने के साथ चलने वाली लड़की चाहिए।मुझे वैसी लड़की चाहिए जिसे अच्छे बुरे की समझ हो।औरो के बताए रास्ते पर ना चल कर खुद रास्ता बनाये जिसपर स्वयं भी चले और दूसरे भी प्रेरित हो उस रास्ते पर चलने के लिए। ये 21वीं सदी है माँ।दुनिया बहुत आगे निकल चुकी है । मैं पीछे क्यों देखूं।
विजय – माफ करना मैडम! आपको पुरानी चौकी का रास्ता मालूम है क्या?
विजय रेलवे स्टेशन पर उतरते ही एक लड़की से पूछा…..वो लड़की कोई और नहीं बल्कि साक्षी थी। उसने कहा जी हाँ, पर आपको वहाँ क्या काम है ????
विजय – क्या आपको मालूम है ?
साक्षी – सोच में पड़ गई ।कुछ देर सोचने के बाद बोली ,जी हाँ ,वैसे मैं वहीं जा रही हूँ ,चाहो तो चल सकते हो ।,,,,,,,
उस सफर के दौरान विजय और साक्षी में जो भी वार्तालाप हुई वो एक दूसरे को समझने के लिए काफी था ।दोनों ही एक दूसरे के सोच को अच्छी तरह से समझ गए। वहाँ पहुँचने के बाद मालूम हुआ कि विजय को जिस घर में जाना था साक्षी उसी घर मे रहती है।सपना कोई और नहीं बल्कि साक्षी की जुड़वाँ बहन है जिससे मिलने के लिए विजय वहाँ आया है । जब विजय सपना से मिलता है,उससे बात -चीत करता है,उसका पहनावा देखता है, उसके बात करने का लहजा देखता है कि कैसे वो डर -डर के बात कर रही थी तो उसे लगता है कि सपना मेरी सोच से बिल्कुल परे है।मुझे जैसी लड़की चाहिए सपना वैसी तो बिल्कुल भी नहीं है। वो तो पुराने खयालात की है।मेरी सोच के जैसी तो साक्षी है।जैसी लड़की से शादी करने की मेरी कल्पना थी साक्षी बिल्कुल वैसी ही है। खैर विजय वहाँ सभी लोगों से अच्छे से मिलता और फिर अपने घर वापस चला जाता है ।
माँ- विजय आ गए बेटा? जी माँ, विजय के शब्दों में एक अजीब सी खामोशी थी । कुछ देर तो विजय ख़ामोश ही रहा।फिर माँ के पूछने पर उसने कहा माँ, मैं सपना से शादी नहीं कर सकता।क्योंकि वो पुराने खयालात की है।मेरी सोच आज के जमाने की है माँ ।मैं आज में जीना चाहता हूँ।दुनिया बहुत आगे निकल चुकी है हम पीछे क्यों जाए। सपना की एक बहन थी साक्षी।उसकी सोच, समझ उसका व्यवहार मुझे बहुत पसंद आया ।वो बिल्कुल मेरे जैसी थी। माँ अगर आपलोगों की इजाजत हो तो मैं साक्षी से शादी करने के लिए तैयार हूँ, पर सपना के साथ मैं शादी करके मैं उसको खुश नहीं रख पाउँगा।शादी एक पवित्र बंधन होता है। जिसे दो लोग साथ मिलकर निभाते हैं।उसके लिए दोनों के विचारों का मिलना बहुत अहमियत रखता है। आप ही बताइए मैं क्या करूँ? सपना और साक्षी दोनों एक ही जैसी है।दोनों हमशक्ल हैं ।माँ, अगर आपकी इजाजत हो तो क्या मैं साक्षी से शादी कर सकता हूँ? ।क्योंकि वो जमाने के साथ खुद को बदलना जानती है और जमाने के साथ कदम- से -कदम मिला कर चल सकती है । मुझे वैसी ही लड़की चाहिए थी माँ।
डॉ. वर्षा कुमारी