आखिर वो दिना आ ही गया जब मिश्रा जी के घर में शहनाइयां बजने वाली ही है। पड़ोसियों को भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था की आज मिश्रा जी के घर में इतनी चहल-पहल और साज-सज्जा क्यों है। पड़ोसियों की तो छोड़िए रिश्तेदारों को भी कुछ समझ नहीं आया कि आखिर मिश्रा जी ने इतनी जल्दी में हमें बुलाया क्यों है। मिश्रा जी की तो खुशियों का ठिकाना ही नहीं था। मानो उनकी पैर धरती पर ही ना हो। वह अपनी खुशियों को मन-ही-मन दबाए मुस्कुराते चले जा रहे थे। वैसे मिश्रा जी ऐसे मौके पर खुश क्यों ना हों, जब उनकी बेटी को देखने के लिए लड़के वाले आ रहे हों। बाप बनने का सुख उन्हें पंद्रह साल बाद जो प्राप्त हुआ है। वह हमेशा अपनी पत्नी शांति से कहा करते थे कि देखना एक दिन मुझे बेटियों के पिता बनने का सुख जरूर प्राप्त होगा। आखिर में उनकी यह बात 15 साल बाद सच साबित हो ही गई। एक नहीं दो-दो बेटियों का सुख भोगते हैं अब मिश्रा जी। बड़ी बेटी संस्कृति और छोटी बेटी ममता। इन बेटियों का सुख पाकर मानो मिश्रा जी को तो अपने जीवन से कोई शिकायत ही नहीं थी। बेटियों के जन्म के बाद से ही वह बेटियों की शादी के लिए धन इकट्ठा करने में जुट गए थे। वह अपनी पत्नी शांति से हमेशा कहा करते थे कि हमारी बेटियों को किसी भी चीज की कमी नहीं होने देंगे। उनकी हर इच्छा हम पूरी करेंगे। उन्हें अच्छी शिक्षा देंगे, उन्हें अपने पैरों पर खडा करेंगे, ताकि वह भी समाज में और लोगों की तरह अपनी पहचान बनाए। दूसरों के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर चलना सीखे। अपना हक जाने, अपने अधिकार के बारे में जाने, कठिन परिस्थितियों में भूखा ना मरे,चार पैसा कमा सकें, उन्हें बेटी होने पर शर्मिंदगी महसूस ना हो। बस ऐसी ही उनकी इच्छा थी अपनी बेटियों को लेकर।
मिश्रा जी ने जैसा सोच था अपनी बेटियों के भविष्य के बारे में ठीक वैसे ही उनकी परवरिश की। एक दिन दोनों बेटियों को इस लायक बना ही दिया जिसकी उन्होंने कभी कल्पना की थी। एक बेटी बैंक में काम करती है, तो दूसरी बेटी स्कूल में टीचर है। अब मिश्रा जी की एक ही जिम्मेदारी बची थी वह थी अपनी दोनों बेटियों का कन्यादान करना। उसी सिलसिले में तो आज मिश्रा जी के घर में चहल-पहल मची है। कहीं हलवाई मिठाई बना रहे हैं तो कहीं गरमा-गरम पूरियां तली जा रही है। पड़ोसियों और रिश्तेदारों को भी न्योता दे दिए गए हैं।वह अपनी खुशियों को अकेले नहीं सबके साथ बाँटना चाहते हैं ।घर की साज-सज्जा भी पूरी हो गई है। खाना भी एकदम तैयार है। अब तो दरवाजे पर नजर टिकाए बैठे हैं मिश्रा जी कि कब मेहमानों के दर्शन हों। तभी दरवाजे की घंटी सुनाई देती है और मिश्रा जी का यह इंतजार की घड़ी समाप्त होती है। नाश्ते पानी के साथ ठहाके भी लगने लगे। मानो इन लोगों में कई वर्षों की पहचान है।अब वह समय आ ही गया जब संस्कृति को लड़के वालों के सामने लाया गया।लड़की तो पसंद आनी ही थी आखिर मिश्रा जी की परवरिश जो थी ।
बस अब क्या था एक दूसरे का मुंह मीठा कराया जा रहा था। मिश्रा जी की तो खुशियों का ठिकाना ही नहीं था। अब तो उनके मन में तरह-तरह की उधेड़बुन चलने लगी की बेटी को ये देना है, बेटी को वो देना है। खैर यह सब किया क्रम होने के बाद मिश्रा जी चैन की सांस लेते हैं और अपनी पत्नी शांति से बोलते हैं हमारी बेटी की शादी बड़ी धूमधाम से होगी। कोई कमी ना रहेगी। हम सब कुछ देंगे अपनी बेटी को। यही बातें करते -करते शांति ने कहा, क्यों ना हम गुप्ता जी को फोन करके तिलक दहेज की बात कर लें। और उनकी क्या -क्या इच्छा है लेने की यह भी मालूम चल जाएगा। तभी मिश्रा जी ने गुप्ता जी को फोन लगाया और उनसे पूछने लगे। पर गुप्ता जी ने इस मुद्दे पर उनसे ज्यादा बात करना उचित न समझा और उन्होंने मिश्रा जी से कहा कि हम आपके घर आना चाहते हैं। फिर फैसला करेंगे कि शादी होगी की नहीं। गुप्ता जी की ऐसी बातें सुनकर मानो मिश्रा जी के पैरों तले जमीन खिसक गई ।सारे सपने उनके धुंधले दिखने लगे ।
मिश्रा जी का दिल मानो बैठा जा रहा था। मानो उनके शरीर में जान ही ना हो।अगले दिन दरवाजे की घंटी सुनाई दी । तभी पत्नी शान्ति की आवाज आई गुप्ता जी आए हैं।गुप्ता जी अपने पूरे परिवार के साथ मिश्रा जी के घर पधारते हैं ।दोनों परिवार एक दूसरे का हाल-चाल पूछते हैं ।फिर गुप्ता जी ने मिश्रा जी से कहा कि आप फोन पर तिलक -दहेज की कुछ बात कर रहे थे। मिश्रा जी ने उत्तर दिया जी हाँ, तभी गुप्ता जी ने मिश्रा जी को समझाते हुए कहा, “आप हमें भिखारी समझते हैं? मैं आपकी बेटी मांगने आया हूँ ना कि आपसे धन- दौलत और आपका सामान। मेरा भरा पूरा परिवार है। सब खाते कमाते सुखी हैं। हमारे पास किसी भी चीज की कमी नहीं है। क्या हम एक लड़की का पेट नहीं भर सकते, उसके तन पर वस्त्र नहीं दे सकते। उसे प्यार नहीं दे सकते जो हमें आपके धन की आवश्यकता पड़ेगी। इन सब बातों को सुनने के बाद मानो मिश्रा जी से कुछ कहा ना गया।
डॉ.वर्षा कुमारी