शीर्षक- यह देश है वीरों का
धन्य है वो माँ, जिसने वीरों को जन्म दिया
धन्य है वो पिता, जिसने उसे वीर बनाया
धन्य है ये देश, जहाँ वीरों का जन्म हुआ
देश की रक्षा करते-करते
जाने वो कहाँ चले गए
जन्मी है उस घर में बेटी
जाने वो कहाँ चले गए
ना देखा उसका एक बार भी चेहरा
नन्ही सी उस परी की
पापा-पापा ना कह पाई वो
बेटी-बेटी ना कह पाए तुम
सपने तो तुमने भी देखे हजार होंगे
पर उसे पूरा ना कर पाए तुम
करते रहे देश की रक्षा
अब बेटी की रक्षा कैसे कर पाओगे
होगी जिंदगी उसकी बड़ी कठिन
पर उसे भी तुम्हारा पाठ पढ़ाएंगे
ना रोने देंगे उसे कभी तेरी याद में
क्योंकि तुमने तो रक्षा की है देश की
हँसते-हँसते सहेगी दर्द सभी
कभी ना अफसोस जताएंगे
जीना तो सिखाएंगे उसे
उसे भी तुम जैसा वीर बनाएंगे
ना हारने देंगे उसे कभी
इतना हिम्मत उसे दे जाएंगे
करना होगा उसे संघर्ष अकेले
क्योंकि यही पाठ उसे सिखाएंगे।
शीर्षक- देश की रक्षा
ना दिन देखी ना रात
बस आगे बढ़ते चले गए
शरहद पर जब वो दुश्मनों से देश की रक्षा करते
दिल बार-बार रो पड़ता
गोली की वो तड़तड़ाहट
जब भी सुनाई देती
मन मे एक अजब सी उदासी दिखाई देती
बिना डर के, निडर बनकर
देश की रक्षा में निछावर होते
जब गोली खाते सीने में
तब माँ की ममता रोती होगी
उनके लिए तो शरहद ही उनका घर होता
फिर भी घर की याद तो हमेशा आती होगी
देस की सेवा करते-करते न जाने कहाँ चले गए। ।
डॉ.वर्षा कुमारी