‘दहेज’ शब्द है तो बहुत छोटा पर शायद यह बात सबको मालूम है की हमारे समाज की यह बहुत बड़ी कुप्रथा है। दहेज देने वाले और लेने वाले दोनों ही दोषी माने जाते हैं। यह सबसे ज्यादा दुखद माना जाता है एक लड़की के पिता के लिए। दहेज मांगने वालों को यह नहीं पता होता कि उनके पास उन्हें देने के लिए कुछ है भी या नहीं।अगर ये बात सोचते तो शायद मांगते ही नहीं। एक दहेज जैसी चीज के लिए वह किन -किन परिस्थितियों से गुजरते हैं ये सिर्फ उसे भोगने वाले ही समझ सकते हैं। देखने वाले सिर्फ अंदाजा ही लगा सकते हैं।
हमारे समाज में बहुत सी ऐसी लड़कियां मिलेंगी जिसकी शादी दहेज की वजह से नहीं हो पाती है। इसका जिम्मेदार हमारा समाज ही तो है। बेटी सिर्फ एक ही घर में नहीं है। इस कुप्रथा को दूर करने का हम सभी को प्रयास करना चाहिए। बेटी तो देश की बेटी है। हम सभी को मिलकर उसे बचाने का प्रयास करना चाहिए।
आज आए दिन हम सभी देखते हैं कि दहेज न मिलने की वजह से बेटी को जलाया गया, उसे मारा गया या घर से निकाला गया। यह सब सिर्फ दहेज की वजह से ही ।हम सभी को मिलकर इसे खत्म करने का प्रयास करना चाहिए। एक बेटी के पिता को पल-पल के ठोकर खाने से बचाना होगा। उन्हें भी समाज में बराबरी का दर्जा दिलाना होगा। हमें यह अहसास कराना होगा की बेटी को जन्म देकर उन्हें कोई पश्चाताप नहीं है और बेटी को भी बेटी होने का दर्द न सहन करना पड़े। देश की प्रत्येक बेटियों की परवरिश ऐसी करनी होगी कि वह स्वावलंबी बन सके। इसका सबसे पहला कदम यही होगा कि हम उसे शिक्षित बनाएँ। उसे शिक्षा ग्रहण करने से वंचित ना रखें। इसके लिए हम सभी को मिलकर बेटी का हौसला बढ़ाना होगा कि एक दिन वह स्वयं कहे की मुझे बेटी होने पर गर्व है।
डॉ.वर्षा कुमारी