रीमा अभी शादी नहीं करना चाहती थी। क्ह अभी आगे बहुत कुछ पढ़ना चाहती थी। उसके सपने बस डिग्री हासिल करने भर के ही नहीं थे। उसने अपनी माँ से सपने देखने सीखे थे। उसके सपनों में एक जान थी। जब भी रीमा की माँ शारदा जी बोलती कि, “बस कर बेटा कितना पढ़ेगी? थक जायगी, अब थोड़ा आराम कर ले। रीमा झट से बोल पड़ती, “अरे माँ !अभी तो मैंने पढ़ना ही शुरू किया है, और आप थकने की बात भी करने लगी। आपको तो मुझे प्रोत्साहित करना चाहिए ना कि हतोत्साहित। शारदा जी को पता था कि अब तो ये डायलॉग मुझपर पड़ने ही वाले हैं। इसीलिए शारदा जी हंसते हुए धीरे से वहाँ से खिसक ली। मन-ही-मन बोलती हैं कि बेटी तू जितना पढ़ना चाहती है मैं तुझे पढ़ाऊंगी। क्या हुआ तेरे सर पर पिता का साया नहीं है। मैं तुझे सपने दिखाऊंगी। मैं ही उसे पूरे भी करूँगी। एक माँ का बेटी से वादा है।
रीमा माँ से बोलती है, “मुझे पता है माँ, आपको मेरी कितनी फ़िक्र रहती है। मैं कहीं थक ना जाऊँ इसीलिए आप मुझे आराम करने के लिए बोलती हो। पर माँ, अगर मैं अभी से थक जाऊँगी तो मेरे सपने तो मर जायँगे। इसलिए मुझे हमेशा कठिन परिश्रम करना पड़ेगा। वैसे भी माँ हम जैसे छोटे से गांव में रहने वाले लोगों को सब कुछ इतनी आसानी से कहाँ मिलेगा। कुछ पाने के लिए तपस्या करनी ही पड़ेगी।” शारदा जी कहती है कि, “हाँ बेटा वो तो है। कुछ पाने के लिए हमें हजारों कुर्बानियाँ देनी पड़ती है। मुझे ही देख लो। आज तुम्हारे पापा हमारे साथ नहीं है तो उसकी वजह है मेरा वकील बनने का सपना। उन्हें मेरा नौकरी करना पसंद नहीं था और मेरा सपना था अपने पैरों पर खडा होना। तुम्हारे पापा को लगा था कि मैं वकालत के एग्जाम में तो कभी पास नहीं हो पाऊँगी। मेरी भी जिद थी कि उन्हें सबक सिखाना ही है कि हम औरतें भी कुछ करने का जज्बा रखती है। हुआ यही की मेरी जिद की ही जीत हुई। जब मैंने एग्जाम पास कर लिया तो तुम्हारे पापा बोले, शारदा तुम्हें आज फैसला करना ही होगा कि तुम मेरी फैमिली सम्भालोगी कि नौकरी करोगी? दोनों में से किसी एक का चुनाव तुम्हे करना होगा आज।
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मैंने भी हँस कर कहा था कि क्या मेरे कहने पर आप आज अपनी पुलिस की नौकरी छोड़ सकते हो? उनका जवाब था नहीं। तो मैंने भी बोल दिया कि फिर मुझसे क्यों हाँ की उम्मीद करते हो। जब तुम महज 3 साल की थी। तभी मैंने तुम्हें लेकर अलग रहने का फैसला कर लिया। मैंने हजारों तकलीफें सही। पर हार नहीं मानी। जीवन तो बहुत जटिल था तब मेरा। किसी का सहारा नहीं था मेरे पास। तब से आज तक तुम्हारे पापा ने एक बार भी पलट कर मेरे या तुम्हारे तरफ नहीं देखा। मैंने तुम्हें मम्मी और पापा दोनों का प्यार दिया। बेटा, तू ही बता क्या मैंने गलत फैसला किया था उस समय। रीमा कहती है, “नहीं माँ, आपने बिल्कुल सही फैसला लिया था। आपके जज्बे को मैं सलाम करती हूँ। आपने गाँव में वकील बन कर रहने का फैसला लिया। ऐसों आराम की जिंदगी को ठुकरा कर आपने गरीब, बेसहारा लोगो के लिए वकील बनने की जो सपथ ली है, उससे समाज को सिख लेने की जरूरत है । आज आपकी वजह से मैं भी अपने सपने पूरे करने जा रही हूँ। माँ, मुझे ये तो नहीं पता है कि मैं आपके जैसी बड़ी वकील बन पाऊँगी की नहीं। पर आपसे वादा करती हूँ कि मैं हमेशा सच का ही साथ दूँगी। गरीबों के अधिकार के लिए हमेशा लड़ूँगी। वो भी बिना फीस लिए। सच्चाई के तह तक जाऊँगी। लोगों के साथ हमेशा न्याय ही करूँगी। लोगों को पता तो चलना ही चाहिए कि रीमा शारदा जी की बेटी है।
डॉ.वर्षा कुमारी