पारुल सोचती है कि इस कोरोना जैसी महामारी में लोग गरीबों की मदद कर रहें हैं।
क्यों न हम भी थोड़ी बहुत मदद बेसहारा लोगों की करें। गरीबों के पास उतने पैसे कहाँ कि
वो सेनेटाइजर और मास्क खरीद सके। यही सोचते-सोचते वो अपने पति नितिन से कहती
है कि, “सुनो! क्यों न कुछ सामान हम भी गरीबों में बाटें। वो बेचारे गरीब कहाँ से इस कोरोना
काल में अपनी हिफाजत कर सकेंगे। ऐसे में उनकी मृत्यु दर ज्यादा हो जाएगी न।” नितिन
कहता है कि, “देखो पारुल! हम मध्यवर्गीय परिवार के लोग अपना ही पेट बहुत मुश्किल से पालते
हैं। ऐसे में हम दूसरों की मदद कैसे करेंगे?” बोलते हुए नितिन ऑफिस के लिए निकल गया। जाते-जाते वह रास्ते में देखता है कि किन्नर समुदाय भारी मात्रा में अन्न, मास्क तथा सेनेटाइजर गरीबों में बाँट रहे हैं। नितिन को तो पहले यकीन ही नहीं हुआ। फिर वह गाड़ी से उतर कर उन लोगों से पूछता है कि, ” ये सब आपलोग कहाँ से……?” तभी किन्नर समुदाय के लोगो ने कहा, “साहब! क्या हुआ कि हमलोग, आपलोगों के पैसों से अपना पेट भरते हैं। हमारे कमाने का जरिया आपलोग हो, तो सोचा कि आपलोगों के ही पैसों से इन गरीब लोगों की थोड़ी मदद हम भी कर दें। चाहे हम किन्नरों का समुदाय हाशिये पर खड़ा है। पर साहब हम भी इंसान ही हैं। हमें भी दूसरों के दर्द से दर्द और दुसरों की खुशी से खुशी होती है। हमारे अंदर भी भावनाएं हैं। हमें खुद से अलग ना समझे।
नितिन उनकी बातें सुन कर स्तब्ध सा रह गया और वह सुबह पारुल की कही बातों को याद करने लगा। वह घर जाते ही पारुल से कहता है, “पारुल चलो, हम भी आज गरीबों की थोड़ी बहुत मदद करने चलते हैं। चलो देखो, मैं आज क्या-क्या लाया हूँ गरीबों में वितरण करने के लिए।”
पारुल मन-ही-मन सोचती है कि अचानक इनकी बुद्धि परिवर्तित कैसे हो गई। वो नितिन से कहती है कि, “किसने आपको इतनी अच्छी सबक सिखा दी?” तभी नितिन कहता है कि, ” सुबह जब मैं ऑफिस जा रहा था तभी देखा कुछ किन्नर समुदाय के लोग लोगो में कुछ सामग्री वितरण कर रहे थे उसी समय मैंने भी मन बना लिया कि जब ये लोग इतने नेक कर्म कर रहे हैं तो थोड़ी बहुत तो हम भी कर ही सकते हैं न।” पारुल कहती है भला हो उन किन्नर समुदाय का जो तुम्हें इतनी अच्छी सीख मिली। जितना है हमारे पास उतने में ही हमें दूसरों की मदद करने के बारे में सोचना चाहिए।
डॉ.वर्षा कुमारी