कविता
शीर्षक- एक बेटी माँ के गर्भ में कहती है
ओ माँ! मुझे जन्म नहीं लेना है
इस दरिंदगी भरे समाज में, मुझे नहीं आना है
क्या करेगी, तु मुझे जन्म देकर
मेरे घर वाले तो, पहले ही मारने की तैयारी कर बैठे हैं
माँ, क्योंकि मैं बेटी हूँ न
अगर गलती से, तूने मुझे जन्म दे भी दिया
तो समाज के दोहरे चरित्र वाले, मेरी इज्ज़त तो लूटेंगे
मैं वैसे भी तो, मर ही जाऊँगी
अगर गलती से बच भी गई
तो दहेज लोभी तो मुझे जला ही डालेंगे
माँ, मैं कैसे जियूंगी इस समाज में
कैसे तू देगी जन्म, मुझे ऐसे लोगों के बीच में
बस इतना ही रहम कर दे माँ
मुझे ना आना इस दुनिया में
जहाँ बेटियों की हर रोज बली चढ़ाई जाती है
कभी जलाई, तो कभी भगाई जाती है
कभी फाँसी पर लटकाई, तो कभी गला दबाई जाती है
इसीलिए तू मुझे जन्म देगी माँ? बोल माँ बोल…..!
शीर्षक- कोई तो होता (कविता)
एक बेटी अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए कहती है-
कोई तो होता, जो मुझे समझता
कोई तो होता, जो मेरी भावनाओं को समझता
कोई तो होता, जो मेरी कद्र करता
कोई तो होता, जो मेरी आँखों को पढ़ता
कोई तो होता, जो मेरी खामोशी को पढ़ता
कोई तो होता, जो मेरे जज्बात समझता
कोई तो होता, जो मेरे शब्दों के दर्द को समझता
कोई तो होता, जो मुझे उजाले में ले जाता
कोई तो होता, जो मेरी फ़िक्र करता
काश कोई तो होता
शीर्षक- बचपन की यादें(कविता)
एक बेटी अपने बचपन को याद करते हुए कहती है–
कहाँ गया वह बचपन
वह सुकून, वह चैन
सब मिले जमाने हो गए
वह मस्ती, वह शरारत
सब किए जमाने हो गए
वह खिलखिलाना, वह हंसना
सब किए जमाने हो गए
वह रोना, वह चिल्लाना
सब किए जमाने हो गए
माँ से झूठ बोलकर, घर से भागना
सब किए जमाने हो गए
पिता की डांट, पिता की मार
सब देखे जमाने हो गए
क्योंकि बचपन को बीते जमाने हो गए।।
डॉ.वर्षा कुमारी